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बदल कर रहेगा / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
हवा जो चली है नयी वह
गरजती हुई कल
बनेगी अथक वेग तूफ़ान का !
और जो आज
युग की हरारत से
पिघला जमा बर्फ़
वह कल
प्रवाहों की दृढ़ शक्ति बनकर के
दुनिया का नक़्शा
बदल कर रहेगा !
कि जो यह लगा है
अभी आज हलका-सा धक्का
वही कल धरा को
उलट कर, पुलट कर,
हिला कर, डुला कर,
नया रूप देकर रुकेगा !