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बदल जाएगा सब कुछ ये तमाशा भी नहीं होगा / शहराम सर्मदी
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बदल जाएगा सब कुछ ये तमाशा भी नहीं होगा
नज़र आएगा वो मंज़र जो सोचा भी नहीं होगा
हर इक लम्हा किसी शय की कमी महसूस भी होगी
कहीं भी दूर तक कोई ख़ला सा भी नहीं होगा
वो आँखें भी नहीं होगीं कहें जो अनकही बातें
हवा में सब्ज़ आँचल का वो लहरा भी नहीं होगा
सिमट जाएगी दुनिया साअत-ए-इमरोज़ में इक दिन
शुमार-ए-ज़ीस्त में दीरोज़ ओ फ़र्दा भी नहीं होगा
मगर क़द रोज़ ओ शब का देख कर हैरान सब होंगे
मदार अपना ज़मीं ने गरचे बदला भी नहीं होगा
अजब वीरानियाँ आबाद होंगी क़र्या-दर-क़र्या
शजर शाखों पे चिड़ियों का बसेरा भी नहीं होगा