बदल जाते हैं दिल-ए-हालात जब / जमील मज़हरी
बदल जाते हैं दिल-ए-हालात जब करवट बदलते हैं
मोहब्बत के तसव्वुर भी नए साँचों में ढलते हैं
तबस्सुम जब किसी का रूह में तहलील होता है
तो दिल की बाँसुरी से नित नए नग़मे निकलते हैं
मोहब्बत जिन के दिल की धड़कनों को तेज़ रखती है
वो अक्सर वक़्त की रफ़्तार से आगे भी चलते हैं
उजाले के पुजारी मुज़्महिल क्यूँ हैं अँधेरे से
के ये तारे निगलते हैं तो सूरज भी उगलते हैं
इन्ही हैरत-ज़दा आँखों से देखे हैं वो आँसू भी
जो अक्सर धूप में मेहनत की पेशानी से ढलते हैं
मोहब्बत तो तलब की राह में इक ऐसी ठोकर है
के जिस से ज़िंदगी की रेत में ज़मज़म उबलते हैं
ग़ुबार-ए-कारवाँ हैं वो न पूछो इज़्तिराब उन का
कभी आगे भी चलते हैं कभी पीछे भी चलते हैं
दिलों के ना-ख़ुदा उठ कर सँभालें कश्तियाँ अपनी
बहुत से ऐसे तूफ़ाँ 'मज़हरी' के दिल में पलते हैं