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बदळणो / राजूराम बिजारणियां
Kavita Kosh से
घड़ी री सूयां
पिछाणै आपरी
चाल रो चकोरियो
छोटकी टुरयां’जै
बड़ोड़ी रै ला’रै
काण कायदै साथै।
पाणी‘ई कद भूलै
बैवंतै बखत
न्है’र रो मारग
छोड़ माटी सूं
सागो अनजळ रो
कद रूंख चढ्या गिगनार।
खींपा री खिंपोळी
फोगां रा फोगला
चिड्यां री चिंचाट
आंधी री सूंसाट
बादळ री गड़गड़
गडां री पड़पड़
आज ताणी
बि’सी री बि‘सी
नीं है तो फगत-
,सीर अन्न में!
नीर तन में!!
पीर मन में!!!