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बदळाव / निशान्त
Kavita Kosh से
बचपनै रो
कीं नीं बच्यो अब
घर-गाम अर
सै’र रो
भूगोल तकात बदळग्यो
ओळयूं मांय
का सुपना मांय
नान्हों सो अेक पल
पळकै तो लागै जियां
अेक जूण मांय
दो जूण भोग ली हुवै ।