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बदळाव / शिवराज भारतीय
Kavita Kosh से
बादळिया
कदैई हरखै
हरखावै
कदैई बणन सारू
तरसै
तरसावै
एक सो कद बरस्यो
वां सूं पाणी।
रेत
कदैई हवा रै साथै
रमतियां रमै
तो कदैई
ठौड़ पड़ी
भाखर ज्यूं जमै
हर गत सूं
अणजाणी।
जिंदगी
कदैई मुळकै
मुळकावै
अर दूजै ई छिण
टप-टप
आंसूड़ा ढळकावै
एक सी कद रही
कीं री कहाणी।