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बधिर / सुबोध सरकार / मुन्नी गुप्ता / अनिल पुष्कर
Kavita Kosh से
मैं यदि किसी दिन पूरी तरह से बहरा हो जाऊँ
मुझे नौका से किसी एक द्वीप पर रख आना
सुना है जो लोग सुन नहीं पाते
उनके सुनने के रास्ते में जलशँख बजता है ।
एक बधिर कान और मरे हुए पुरुष का अण्ड
एक धरित्री के सामने रोता है दूसरा सुन नहीं पाता
मैं क्या बहरा हो जाऊँगा ? यदि हो जाऊँ
जो शिशु आएगा, उसके जन्म से पहले ही दूर द्वीप पर रख आना ।
मूल बाँग्ला से अनुवाद : मुन्नी गुप्ता और अनिल पुष्कर