भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बनड़े सीस तेरे का सेहरा / हरियाणवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बनड़े सीस तेरे का सेहरा, बनड़े कान तेरे के मोती
मोहे बखसो ना जी बनड़ा
बनड़ी जो देखो सोए मांगों, घर के लडैंगे ए बनड़ी
रायबर घर क्यां तै डरो था, क्यों परणों थे जी बनड़ा
बनड़ी बालक सा ब्हाह्या था, अब सुध आई है बनड़ी
बनड़ा गल तेरे का तोड़ा, बनड़ा अंग तेरे का जामा
मोहे बखसो ना जी बनड़ा
बनड़ी जो देखो सोए मांगों, घर के लड़ैंगे ए बनड़ी
रायबर घर क्यां तै डरो था, क्यों परणों थे जी बनड़ा
बनड़ी बालक सा ब्हाह्या था, अब सुध आई है बनड़ी
बनड़ा हाथ तेरै की घड़िआं, बनड़ा पैर तेरे का जूता
मोहे बखसो ना जी बनड़ा