भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बनबै हम्मू वीर सिपाही / माँटी हिन्दुस्तान के / राहुल शिवाय
Kavita Kosh से
वंदे मातरम हम्मेॅ गैबै
देशोॅ खातिर जान गमैबै
देशोॅ रोॅ अभिमान के पथ के
बनबै हम मतवाला राही
बनबै हम्मू वीर सिपाही ।
लेकेॅ तिरंगा बढ़तै जैबै
कभी नै दुश्मन सेॅ घबरैबै
सदा शांति स्थापित करबै
बनबै सत्य के हम परछाई
बनबै हम्मू वीर सिपाही ।
भेद-भाव नै मनोॅ मेॅ लैबै
सबके हम्में गारोॅ लगैबै
चाहे हिन्दु, चाहे मुस्लिम
चाहे भले ही हुए ईसाई
बनबै हम्मू वीर सिपाही ।
रचनाकाल- 15 जनवरी 2013