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बनवारी गगरिया भरै दऽ हे / अंगिका लोकगीत
Kavita Kosh से
♦ रचनाकार: अज्ञात
इस गीत में सिरहर विधि को संपन्न करने के लिए वस्त्र की याचना की गई है।
बनवारी गगरिया भरै दऽ हे।
भरि के भराइ दऽ सिर चढ़ाय दऽ, मथुरा नगर पहुँचाय दऽ हे॥1॥
भागलपुर सेॅ सारी<ref>साड़ी</ref> मँगाय, सिरहर<ref>वह घड़ा जिसमें इस विधि को संपन्न करने के लिए पानी भरा जाता है</ref> भरनिहारिन<ref>भरने वाली</ref> के पिन्हाय<ref>पहना दो</ref> दऽ हे॥2॥
शब्दार्थ
<references/>