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बनाउ प्रयसी / ककबा करैए प्रेम / निशाकर
Kavita Kosh से
गंगा मे डुबू नहि
नहि खाउ माहुर
नहि लगाउ फँसरी
नहि भेटल
प्रेम
आ नहि भेटलीह प्रेयसी
कोनो बात नहि
ओकर स्मृतिएसँ करू
प्रेम
ओकरे बनाउ प्रेयसी
आ प्रेम करू
शीत ग्रीष्म वर्षा
जल थल नभ
पशु पंछी फनिगा
सुरुज चान तारासँ।
ओकरे बनाउ प्रेयसी।