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बनाते रहे वो बहाने हज़ारों / सुजीत कुमार 'पप्पू'
Kavita Kosh से
बनाते रहे वह बहाने हज़ारों,
सुनाते रहे हम तराने हज़ारों।
बड़ी मतलबी थी मुहब्बत सनम की,
लुटाते रहे हम ख़ज़ाने हज़ारों।
पता है उन्हें सब क़यामत अदाएँ,
लगी दिल पर बिजली गिराने हज़ारों।
कभी पास आके लुभाती रही है,
बताती है अब वह ठिकाने हज़ारों।
सदा दे रही अब वफ़ा भी हमारी,
आए याद मंज़र पुराने हज़ारों।
जफ़ा नाम से दिल लरज़ने लगा है,
कहाँ हैं वह लम्हें सुहाने हज़ारों।
दिए जा रहे ख़ूब ताने हमें अब,
सुने जा रहे हैं ज़माने हज़ारों।