भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बनारस-4 / निलय उपाध्याय
Kavita Kosh से
बनारस में
मणिकर्णिका और हरिश्चन्द्र घाट पर
क्यों जलाए जाते है हर साल
तैतीस हज़ार शव
क्या महज इसलिए
कि हर साल जलाई जाती रहे
जंगल की अड़तालीस हज़ार टन
लकडियाँ
क्या इसलिए
कि बहायी जाता रहे
चौबीस हज़ार टन राख
दो सौ पचास क्विण्टल भेसरा
गंगा के जल में
क्या इसलिए
कि खड़ा-खड़ा मुँह देखता रहे
बिजली का शवदाह-गृह और चलता रहे
जस का तस
कभी पूजाई के नाम पर
कभी कचराई के नाम पर
कभी सफ़ाई के नाम पर
कमाई का
कारोबार है गंगा
मोक्ष दे सके, दे सके मुर्दे को नया जन्म
दे सके देश को नए विचार, यह ताक़त
अब न तो गंगा में है,
न बनारस मे
बस
यही सच है कि
कि यह मिथको के टूटने का समय है
और यहाँ सदियो से जल रही है
धूनी
मसान की