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बनावटी सिंह / सुखराम चौबे 'गुणाकर'

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गधा एक था मोटा ताजा,
बन बैठा वह वन का राजा!

कहीं सिंह का चमड़ा पाया,
चट वैसा ही रूप बनाया!

सबको खूब डराता वन में,
फिरता आप निडर हो मन में,

एक रोज जो जी में आई,
लगा गरजने धूम मचाई!

सबके आगे ज्यों ही बोला,
भेद गधेपन का सब खोला!

फिर तो झट सबने आ पकड़ा,
खूब मार छीना वह चमड़ा!

देता गधा न धोखा भाई,
तो उसकी होती न ठुकाई!