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बना चांद दूल्हा, सुहानी हैं रातें / शोभा कुक्कल

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बना चांद दूल्हा, सुहानी हैं रातें
सितारों की आकाश पर ये बरातें

ब्राह्मण व खतरी व वैश और शुदर
बनाई मनु जी ने ये चार जातें

हुआ ख़्वाब, मस्ती भरा वो ज़माना
वो शामें सुहानी वो रंगीन रातें

ज़माने में आने लगी हैं खराबी
बरतनी हमें चाहिए एहतियातें

ये नेता नये दौर के तौबा तौबा
जो खा जाएं आटा ये वो हैं परातें

नहीं आएंगी ज़िन्दगी में दुबारा
वो रंगीन रातें वो पुर-लुत्फ घातें

कलम में नहीं पहले जैसी रवानी
वही है सियाही वही हैं दवातें।