भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बना धूल रख मुझको अपनी गली में / प्रेम नारायण 'पंकिल'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बना धूल रख मुझको अपनी गली में।
किसी भाँति लिपटूँ तेरी पद तली में।।1।।

अभीं तुमको भजती अभीं भज चलेगी,
लगा दो प्रभु रोक मति मनचली में।।2।।

बली काम की वेदना से विकल हूँ
रही जिन्दगी बीत खल-मंडली में।।3।।

रखो मत कसर कुछ भी अपनी तरफ से
चखा दो मजा क्या तेरी बेकली में।।4।।

दयामय चपल मन को जबरन फॅंसा लो
चरण कंज नख-चन्द्रिका निर्मली में।।5।।

हृदय धाम में नाथ स्वागत तुम्हारा
विराजो मेरे उर की ’पंकिल’ कली में।।6।।