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बन्दर वाला / कमलेश द्विवेदी

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बन्दर वाला-बन्दर वाला खेल दिखाता ख़ूब निराला।
 
उछल-उछलकर बन्दर मामा,
सबका मन बहलाते हैं।
जाते हैं ससुराल आज वो,
फ़िल्मी गाना गाते हैं।
पहने हैं वह सूट सफारी आँखों पर है चश्मा काला।
बन्दर वाला-बन्दर वाला खेल दिखाता ख़ूब निराला।

लहँगा-चुन्नी पहन बँदरिया,
छम-छम नाच दिखाती है।
बन्दर मामा कि खातिर वो,
चाय-नाश्ता लाती है।
फिर कहती-क्या मेरी खातिर लाये कंगन-नथनी-बाला।
बन्दर वाला-बन्दर वाला खेल दिखाता ख़ूब निराला।

बन्दर मामा कहते-सुन लो,
तुम्हें लिवाने आया हूँ।
मेरे सँग चुपचाप चलो तुम,
वरना डंडा लाया हूँ।
चल देती है तुरत बँदरिया बिना किये कुछ गड़बड़झाला।
बन्दर वाला-बन्दर वाला खेल दिखाता ख़ूब निराला।