बन्दर से अधिक बुद्धिमान बँदरिया / कमलेश द्विवेदी
एक दिवस भोलू बन्दर ने पर्स राह में पाया।
नोट देखकर काफ़ी उसमें ऐसा प्लान बनाया-
आज बँदरिया रानी पर कुछ रंग जमाया जाये।
पाँच सितारा होटल में चल खाना खाया जाये।
भोलू जी जा पहुँचे होटल वेटर को बुलवाया।
सबसे पहले सूप टुमैटो वेटर लेकर आया।
भोलू जी पी गये शौक से सूप गटागट सारा।
पर रानी ने कहा-टेस्ट हो गया खराब हमारा।
चिंटू बन्दर बोला-छिःछिः ये क्या चीज है मम्मी।
सोच रही थी मम्मी-इससे अच्छा जूस मुसम्मी।
उसके बाद सामने आया उबला-उबला खाना।
नमक न ढँग का मिर्च न ढँग की स्वाद नहीं कुछ जाना।
खत्म हुआ जब खाना वेटर उठा ले गया थाली।
बिल देने में भोलू जी का पर्स हो गया खाली।
भोलू जी ने कहा-डियर, क्या मज़ा डिनर में आया।
उन्हें बँदरिया रानी ने तब कुछ ऐसे समझाया-
बुद्धिमान यदि होते पैसा ऐसे नहीं बहाते।
इस पैसे से मेरी खातिर तुम साड़ी ले आते।
तुमसे साड़ी पा करके मैं कितना खुश हो जाती।
इस होटल से अच्छा खाना घर में तुम्हें खिलाती।
सोच रहे थे भोलू जी-है सबका ग़लत नजरिया।
बन्दर से भी बुद्धिमान होती है अधिक बँदरिया।