भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बन्दे पै इतनौ एहसान करें साहब / नवीन सी. चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
बन्दे पै इतनौ एहसान करें साहब।
नजर जोर कें इस्माइल बखसें साहब॥
बाट निहारतु ए कब सूँ मन की मेहराब।
अब तौ जा पै बन्दनवार लगें साहब॥
हम तौ कब सूँ सेहरा बाँधें बैठे हतें।
आज कहौ तौ आज इ माँग भरें साहब॥
धुर सूँ लै कें एण्ड तलक मीटिंग-मीटिंग।
दफ्तर छूटै तौ कछ काम करें साहब॥
बचत बचाबैगी हम कूँ सच्ची ए मगर।
महँगाई में का इनबेस्ट करें साहब॥