भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बन्ना ए कित बाजा रे बाजिया / हरियाणवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बन्ना ए कित बाजा रे बाजिया,
बन्ना ए कित घरा रे निसान छोटा छेल उतर्या बाग मैं।
तेरी बंदड़ी रे कह्वै रै बन्ना,
तूंए सबेरी सबेरी आय छोटा छेल उतर्या बाग मैं।
बंदड़ी गहणा घड़ावण मैं गया,
सुनरे ने ला दई बार रे छोटा छेल उतर्या बाग मैं।
बंदड़ा गहणा घड़ावै तेरा दादा जी तेरा ताऊ जी,
तूं तड़कै ए तड़कै आय छोटा छेल उतर्या बाग मैं।
बन्नी कपड़ा बिसावण मैं गया,
बणिया नै ला दई बार छोटा छेल उतर्या बाग मैं।
बन्दड़ा कपड़ा बिसावै तेरा बाबल जी तेरा काका जी,
तूं सबेरी ए सबेरी आय छोटा छेल उतर्या बाग मैं।
बंदड़ी मैंहदी बिसावण मैं गया,
पंसारी नै ला दई वार छोटा छेल उतर्या बाग मैं।
बंदड़ा मैंहदी बिसावै तेरा बीर जी तेरा मामा जी,
तूं रै सबेरी ए सबेरी आय छोटा छेल उतर्या बाग मैं।
बन्ना ए कित बाजा रे बाजिया,
बन्ना ए कित धरा रे निसान छोटा छेल उतर्या बाग मैं।