भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बन्ना काली रे बदरिआ गोरा चन्दा / हरियाणवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बन्ना काली रे बदरिआ गोरा चन्दा, मैं तारों मैं तै आण मिलूंगी
बन्ना दूर मत जाइयो नदी नाले, मैं वहांए तम तै आण मिलूंगी
बन्ना सीस तेरे का सेहरा मैं लड़ियां ऊपर बार डालूंगी
बन्ना कान तेरे के मोती, मैं सच्यां ऊपर बार डालूंगी
बन्ना गल तेरे का तोड़ा, मैं घुण्डी ऊपर बार डालूंगी
बन्ना हाथ तेरे की घड़ियां, मैं महन्दी ऊपर बार डालूंगी
बन्ना पैर तेरे का जूता, मैं चलगत ऊपर बार डालूंगी
बन्ना हेठ तेरे की लीली, मैं चाबुक ऊपर बार डालूंगी
बन्ना काली रे बदरिया गोरा चन्दा, मैं तारों मैं तै आण मिलूंगी
बन्ना दूर मत जाइयो नदी नाले, मैं बहांए तुम तै आण मिलूंगी