भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बन गये पुजारी पर मन नहीं उजाला है / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बन गये पुजारी पर मन नहीं उजाला है
रूप तो सलोना है दिल ही उनका काला है

राह चल पड़े आ के हैं खड़े दुराहे पे
एक ओर मस्जिद है उस तरफ़ शिवाला है

मोह की नगरिया से भाग ही नहीं पाये
पांव हैं मदीने में जेहन में पियाला है

भक्त जन अनेकों ही रोज हैं चले आते
साँवरे कन्हैया ने पर हमें संभाला है

चाह यश कमाने की छोड़ दिल नहीं पाया
आज मोह माया से पड़ा खूब पाला है

देवता अनेकों हैं धर्म पन्थ भी कितने
धर्म ये सनातन तो सभी से निराला है

जन्म हैं लिया करते पीर और पैगम्बर
देश मे इसी ईश्वर बना नन्दलाला है