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बन गेलूँ बूथ के पदाधिकारी / सिलसिला / रणजीत दुधु

बन गेलूँ बूथ के पदाधिकारी
ढुकढुकाबु घर घर के केवारी

अठारह के पहिले हे अनजान
ओकरा दे ही हमहीं पहचान
पराइविट हो चाहे सरकारी
बन गेलूँ बूथ के पदाधिकारी

जे न´ बोलऽ हल उ करे परनाम
कहे जी जोड़ देथिन हमर नाम
रहबन अपने के हम बड़ आभारी
बन गेलूँ बूथ के पदाधिकारी

जिनकर घर में ताला ऊ मुरदा
जिनका चाहुँ हम हथ मरलो जिंदा
जान ला कि कतना ही हम भारी
बन गेलूँ बूथ के पदाधिकारी

जे हमरा से काटऽ हका कन्नी
उ मरदाना के बनावऽ ही जन्नी
जवानों के ला दे ही बुढ़ारी
बन गेलूँ बूथ के पदाधिकारी

जेकरा पर हम्मर मिजाज बिगरे
जिनगी में न´ ओकर नाम सुधरे
देते रे उ कउनो गारी
बन गेलूँ बूथ के पदाधिकारी