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बन जाएगा पहाड़ / स्वाति मेलकानी
Kavita Kosh से
सीढ़ीदार खेतों में उगे
मटमैले हाथ-पैर,
झुर्रियों से
झुलसते चेहरों मे चिपकी
पानीदार आँखें,
नदियों के साथ
ढुलकती बोतलों में
कैद होकर
मैदानों को बहती जवानी,
रख दो
एक के ऊपर एक
बन जाएगा पहाड़।