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बन बन के वो आईना ज़रा देख रहे हैं / रियाज़ ख़ैराबादी

बन बन के वो आईना ज़रा देख रहे हैं
आग़ाज-ए-जवानी की अदा देख रहे हैं

बन बन के क़ज़ा खेल रही है मिरे सर पर
वो आईने में अपनी अदा देख रहे हैं

आए तो हैं पीते नहीं नासेह अभी साक़ी
महफ़िल का तिरी रंग ज़रा देख रहे हैं

देखा नहीं हम ने अभी दुनिया का बदलना
बदली है ज़माने की हवा देख रहे हैं

अब ख़ार नहीं ‘रियाज़’ आँख में है आलम-ए-हस्ती
हम दूसरे आलम की फ़ज़ा देख रहे हैं