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बबूल / प्रत्यूष चन्द्र मिश्र

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गाँव से शहर जाने वाले रास्ते पर
दोनों तरफ मिलता हमें
बबूल
ख़तरों से आगाह करता हुआ

उसके रोम-रोम में भरा रहता कसैलापन
बीच-बीच में अनाम फूलों ओर घास की झाड़ियाँ रहती
उसकी टहनियों से हम दतवन करते

काँटों से बच-बचाकर चलते हुए
हम शहर पहुँचते
बबूल गाँव से ज़्यादा हमें यहाँ काम आता ।