भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बम और कविता / राजेश अरोड़ा
Kavita Kosh से
एक हो रहा है यूरोप
विघटित हो चुका है रूस
शाश्वत नहीँ है
विश्व मानचित्र पर खींची लकीरें
फिर क्यों होते हैं युध्द
जिसमें गिरते हैं बम
और युध्द में मरने वाले आदमी
कभी होते है इराकी
बमों से मरने वाली औरते
होती हैं कभी हिंदुस्तानी
बमों से मरने वाले बच्चे
होते हैं कभी पाकिस्तानी
शाश्वत है तो
सिर्फ लड़ाई
बमों की और आदमियों की
काश जीत जाये एक बार आदमी ।