भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बयानात / विजयशंकर चतुर्वेदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पिता का बयान है ---
वह हँसने-खेलने वाली लड़की थी
ज़िन्दगी में कोई तकलीफ़ नहीं थी उसे
वह सजा रही थी भविष्य के सपने

भाई ने बताया ---
कल ही तो कहा था उसने
भैया, अभी मत आना
मैं जा रही हूँ इनके साथ बाहर कहीं घूमने

सहेलियों ने याद किया ---
हममें सबसे अच्छी बोलनेवाली थी वह
सबसे अच्छी खिलाड़ी
बड़ी ज़िन्दादिल

माँ ने छाती पीट ली ---
हे विधाता! इसका ही अन्देशा था मुझे

कितना कुछ छिपाती रहती हैं लड़कियाँ
आत्महत्या के दिन से पहले तक
... और कितना छिपाती रहती है माँ ज़िन्दगी भर।