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बयान / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
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मैं बार– बार आऊँगा
लेकर फूलों का हार
तुम्हारे द्वार ।
जितने भी काँटे पथ में
बिखरे हुए पाऊँगा
आने से पहले मैं
जरूर हटाऊँगा ।
मैं बार –बार आऊँगा ।
बहुत हैं अँधेरे जग में
आँगन में देहरी पर
जहाँ तक हो सकेगा
दीपक जलाऊँगा ।
मैं बार– बार आऊँगा ।
मुस्कानों की खुशबू को
बिखेर हर चेहरे पर
सूरज सी चमक सदा
हर बार लाऊँगा
मैं बार– बार आऊँगा ।