भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बरगद की झूलती जटाएँ / ठाकुरप्रसाद सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गाँव के किनारे
गाँव के किनारे है बरगद का पेड
बरगद की झूलती जटाएँ

कैसी रे झूलती जटाएँ
झूलें बस भूमि तक न आएँ ।

ऐसे ही लडके इस गाँव के
कहने को पास चले आएँ

बाँहें फैलाएँ
झुकते आएँ

मिलने के पहले पर
लौट-लौट जाएँ
बरगद की झूलती जटाएँ ।