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बरगद के छाँह तले / रिपुंजय निशान्त

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बरगद के छाँह तले
टोली चर वाहिन के
लइका से हो गइल सियान।
बचपन के दिन अबोध
हो गइल कहानी
पकुहा जइसन टपकल
अचके जवानी
दउरा में डेग धरत
चुनरी अहिवा तिन के
छनहीं में हो गइल पुरान।
अँजुरी भर सपना के
कोंढ़ी मरुआइल
लिलरा पर चिन्ता के
रेखा उग आइल
अँइठेला अगियाइल
अँतड़ी बनिहारिन के
गतर-गतर हो गइल गतान।
रोजे रोजा खाले
साँझ में मड़इया
फगुआ ना ईद कबो
आवे अंगनइया
तंगी के तीर से
घवाहिल दुखियारिन के
तन-मन बा हो गइल झँवान।