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बरगद / पूर्णिमा वर्मन

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गुज़र गया तूफ़ान

ढह गया वह बरगद

जो जीवन भर

साथ निभाने-सा लगता था


कौन कहाँ किसका होता है

यह दुनिया है

नश्वर जीवन

हर पल यहाँ

रोज़ कोई मिलता-खोता है

बारिश का झरना

कब झीलों का सोता होता है ?


काश! बीहड़ों में

अपना एक गाँव होता

जीवन की इस घनी धूप में

छाँव होता

नहीं पहाड़ी झरनों-सा कोई

मिलता-खोता

काश! गहन इस झील का कोई

सोता होता