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बरजै क्यूँ नी, लाल (स्याम) / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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बरजै क्यूँ नी, लाल (स्याम) तेरो यो नटखट जसुमति रानी।
घर-घर जावै, धूम मचावै, करै खूब मनमानी।
सूत्योड़ा सब बाल जगावै, खेलतड़ाँनै जाय रुवावै।
चोटी बाँध पिलँग कै पागै, हँस-हँस देखै कानी ए॥-१॥
छिपकर छानै-मानै आवै, चुपकै-सी घर में बड़ ज्यावै।
खाय चूँटियौ, मटकी फोड़ै, भाजै भय-सी मानी ए॥-२॥
पकडूँ तो यो हाथ न आवै, मूँ टेढ़ो कर मनै चिड़ावै॥
पहुँचो पकड़ झटक कर भाजै करै बड़ी सैतानी ए॥-३॥
आय अँधेरै मैं ल्हुक ज्यावै, धीरै-सी आगल दे आवे।
अंग-‌अंग सैं झरै चाँदणो, कर दे तम की हाणी ए॥-४॥
ग्वाल-बाल घोड़ा बण ज्यावै, उन पर चढक़र हाथ बढ़ावै।
ऊखल पर चढ़ जाय, मह्यो खावै, ढोलै ज्यूँ पाणी ए॥-५॥
बाल-सखा सब मिलकर खावै, बँदराँ नैं यो खूब लुटावै।
आँख नचाकर, मूँ मटका कर, बोलै मधुरी वाणी ए॥-६॥
नाचै-गावै खेल दिखावै, रिझा-रिझा हिवड़ो हुलसावै।
छलियो मन मोहै, यो चोरी करै ड्डेर गुणखानी ए॥-७॥
मुलक-मुलक कर मनैं हँसावै, काढ कालजो यो ले ज्यावैं।
के-के गुण र्‌ईं कान्हूड़े (जीवनधन) का बरणूँ मैं नँद-राणी ए॥-८॥