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बरज्यो न मानत है बार बार बरज्यो मैं / मतिराम

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बरज्यो न मानत है बार बार बरज्यो मैँ ,
कौन काम मेरे इत भौन मैँ न आइए ।
लाज को न लेस जग हँसी को न डर मन ,
हँसत हँसत आन बात न बनाइए ।
कवि मतिराम नित उठ कलकानि करौ ,
नित झूठी सौँहैँ करो नित बिसराइए ।
ताके पग लागौ निस जागि जाके उर लागे ,
मेरे पग लागि उर आगि न लगाइए ।


मतिराम का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।