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बरबर बरबर लाग रहति है / भारतेन्दु मिश्र

बरबर बरबर लाग रहति है
इहिका मउत न आवै
कबहूँ राति राति भरि खाँसै
जोर जोर गोहरावै।

आपनि करनी भूलि बैठ है
दुसरेन का ट्वाकति है
लबर-लबर दिन-राति करति है
अपनै का स्वाचति है

तनकी तनकी बातन पर यू
मुँहु भरि भरि गरियावै।

लरिकन ते दुसमनी निभावै
घुइरि घुइरि खउख्याय
हुक्का पियै, दुवारे बइठै
अकझै औ चिल्लाय

अतनी ताकत है की के, की-
बुढ़वा का समुझावै।