भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बरवत के गोठ / आनंद तिवारी “पौराणिक
Kavita Kosh से
नवा हे जमाना, नवा रिवाज हे,
काकरो आंखी म शरम न लाज हे,
लबरा वर इनाम
सच्चा वर सजा हे
गरीब वर दुख भारी
रोंठहा वर मजा हे
मंदिर हे खाली,
सीनिमा म मेला हे,
रमायन म कोनो नहीं
भट्ठी म रेला हे
टी॰वी॰ हे वीडियो हे
खर्चा बड़ आफत हे
महंगाई क लद्दी म
जनता बोजावत हे
छै फुट के तन म
छै इंची कपड़ा हे
चिन्हारी नइये अपन संगी
कईसन ये लफड़ा हे
मेहनत करइया के
दुनो हाथ रीत हे
पेट भूखे, तन उधरा
अब्ब्ड़ फजीता हे
पईसा की लूट हे
चुसईया बार छुट हे
मंगलू के पुछईया
फिरतू के सुनईया
अउ गरीब के गोसंइया
कोनो नइये भईया
कोनो नइये भईया II