बरसात, याद और तुम / श्वेता राय
रिमझिम पलछिन गिर रही, बाहर ये बरसात है।
नयनो से भी झर रही, रिमझिम दिन औ रात है॥
आकुल मन आहें भरे, व्याकुळ होते प्राण है।
तेरी सुधि बन दामिनी, लेती मेरी जान है॥
पंकिल जीवन बन गया, प्रीत कुमुद की आस में।
चुपके से करुणा हँसे, दुख के इस परिहास में॥
पुरवाई की चोट से, शिथिल पड़ा ये गात है।
यौवन का दिन ढ़ल रहा, लम्बा जीवन रात है॥
आँसू बन भाषा गये, अधर चढ़ा इक मौन है।
जग में अब लगता नही, मेरा अपना कौन है॥
आ जाओ प्रिय आज तुम, पा जाऊँ मुस्कान मैं।
जीवन कुसुमित बाग़ की, बन जाऊँ पहचान मैं॥
घुल जायें स्वर कोकिला, धड़कन की हर बात में।
हरियाली दिन सब लगे, झूमे चंदा रात में॥
मन मयूर बन बावरा, खुशियाँ बाँधें पाँव में।
बीते जीवन प्रेम के, प्रीत भरी मधु छाँव में॥
आ जाओ तुम साजना, सावन की बरसात में...