भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बरसात-1 / जगदीश चतुर्वेदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बादलों के झुरमुट
मुझे अच्छे नहीं लगते

सड़कों पर रेंगती हैं चेहरा छिपाए युवतियाँ
मर्द फ़ौजियों की तरह कनटोप चढ़ाए

और मुझे
अपना छोटा-सा गाँव याद आता है
जहाँ मेरी पत्नी मेरा इन्तज़ार कर रही होगी ।