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बरसात का तमाशा / नज़ीर अकबराबादी

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अहले सुखन को हैगा, एक बात का तमाशा।
और आरिफ़ों<ref>ज्ञानी</ref> की ख़ातिर है ज़ात<ref>अस्तित्व</ref> का तमाशा।
दुनियां के साहिबों को दिन रात का तमाशा।
हम आशिक़ों को हैगा, सब घात का तमाशा।
आ यार! चलके देखें, बरसात का तमाशा॥1॥

खु़र्शीद<ref>सूरज</ref> गर्म होकर निकला है अपने घर से।
लता है मोल बादल कर कर तलाश ज़र से।
कोई हवा भी लेकर, बादल को हर नगर से।
आधे असाढ़ तो अब, दुश्मन के घर से बरसे।
आ यार! चलके देखें, बरसात का तमाशा॥2॥

क़ासिक<ref>दूत</ref> सबा<ref>ठंडी हवा</ref> के दौड़े, हरतरफ मुंह उठा कर।
हर कोहो<ref>पहाड़</ref> दश्त<ref>जंगल</ref> को भी, कहते हैं यूं सुनाकर।
हां सब्ज जोड़े पहनो, हर दम नहा नहा कर।
कोई दम को मेघ राजा, देखेगा सबको आकर।
आ यार! चलके देखें, बरसात का तमाशा॥3॥

जब यह नवेद<ref>शुभ सूचना</ref> पहुंची, सहरा<ref>जंगल</ref> में एक बारी।
होने लगी वहां फिर, बरसात की तयारी।
चश्मों<ref>झरना</ref> में कोह<ref>पहाड़</ref> के भी, हुई सबकी इन्तिज़ारी।
मौसम के जानवर भी आते हैं बारी बारी।
आ यार! चलके देखें, बरसात का तमाशा॥4॥

सावन के बादलों से फिर आ घटा जो छाई।
बिजली ने अपनी सूरत, फिर आन कर दिखाई।
हो मस्त राद<ref>बादलों का देवता</ref> गरजा, कोयल की कूक आई।
बदली ने क्या मजे़ की रिम झिम झड़ी लगाई।
आ यार! चलके देखें, बरसात का तमाशा॥5॥

जिन साहिबों के दिल को कुछ ऐश से है बहरा।
वह इस हवा में जाकर, देखें हैं कोहो सहरा।
हर तरफ़ आब सब्ज़ा और गुल बदन सुनहरा।
जंगल में आज मंगल, किस किस तरह का लहरा।
आ यार! चलके देखें, बरसात का तमाशा॥6॥

कोई अपने दिलरुबा<ref>प्रिय पात्र</ref> से कहता है ”देखें जंगला“।
”चीरे<ref>पगड़ी</ref> को तू गुलाबी“, या गुल अनार रंग ला।
और साग़रो सुराही मै की तू अपने संग ला।
पी पी नशों में सैरें, देखें बनाके बंगला।
आ यार! चलके देखें, बरसात का तमाशा॥7॥

हरगुलबदन के तन में पोशाक है इकहरी।
पगड़ी गुलाबी, हलकी, या गुल अनार गहरी।
सहने चमन में है जो, बारह दरी सुनहरी।
उसमें सभों की आकर है बज़्मे ऐश ठहरी।
आ यार! चलके देखें, बरसात का तमाशा॥8॥

माशूक आशिक़ों में क्या बज़्म बानमक है।
शीशा, गुलाबी, साक़ी और ज़ाम और गज़क है।
झंकार ताल की है और तबले की खड़क है।
गौरी, मलार के साथ आवाज की गमक है।
आ यार! चलके देखें, बरसात का तमाशा॥9॥

आकर कहीं मजे़ की नन्हीं फुहार बरसे।
चीरों का रंग छुटकर हुस्नो निगार बरसे।
एक तरफ औलती<ref>औलाती छप्पर के नीचे का भाग</ref> की, बाहम क़तार बरसे।
छाज़ो उमंड के पानी, मूसल की धार बरसे।
आ यार! चलके देखें, बरसात का तमाशा॥10॥

हर कोह की कमर तक, सब्जा है लहलहाता।
बरसे है मेंह झड़झड़, पानी बहा है जाता।
बहशो<ref>जंगली जानवर</ref> तयूर<ref>चिड़ियां, पक्षी</ref> हर इक मल-मल के है नहाता।
गू गां करे हैं मेंढ़क, झींगुर है गु़ल मचाता।
आ यार! चलके देखें, बरसात का तमाशा॥11॥

गुलशन में आ फिरे हैं, सब गुल बदन नुकीले।
साथ उनके लग रहे हैं, आशिक जो हैं रंगीले।
कहता कोई किसी से ”ऐ दिलरुबा हटीले।
एक ही गुलाबी मै की हाथों से मेरे पीले“।
आ यार! चलके देखें, बरसात का तमाशा॥12॥

काली घटा है हर दम बरसें है मेह की धारें।
और जिसमें उड़ रही हैं बगलों की सौ कतारें।
कोयल पपीहे कूकें, और कूक कर पुकारें।
और मोर मस्त होकर जूं कोकिला चिंघारें।
आ यार! चलके देखें, बरसात का तमाशा॥13॥

काली घटाएं आकर, हो मस्त तुल रही हैं।
दस्तारें सुर्ख़ उसमें, क्या खूब खुल रही हैं।
रुख़सारों<ref>गाल</ref> पर बहारें, हर इक के ढुल रही हैं।
शबनम<ref>ओस</ref> की बूंदे जैसे, हर गुल पे तुल रही हैं।
आ यार! चलके देखें, बरसात का तमाशा॥14॥

सावन की काली रातें और बर्क़<ref>बिजली</ref> के इशारे।
जुगनू चमकते फिरते, जूं आसमां पे तारे।
लिपटे गले से सोते, माशूक माह<ref>चांद के टुकड़े</ref> पारे।
गिरती है छत किसी की, कोई खड़ा पुकारे।
आ यार! चलके देखें, बरसात का तमाशा॥15॥

हाथों में हैं हर इक के फूलों की लाल छड़ियां।
बिजली चमकती फिरती, और लग रही हैं झड़ियां।
कुल बूंदों के जो ऊपर बूंदे हैं मंेह की पड़ियां।
बरसें गोया हज़ारों अब मोतियों की लड़ियां।
आ यार! चलके देखें, बरसात का तमाशा॥16॥

हर एक उनमें बेहतर महबूब गुल बदन है।
खू़बी में बर्ग गुल<ref>गुलाब की पंखुड़ी</ref> से बेहतर हर एक का तन है।
तिस पर यह अब्र<ref>बरसता हुआ बादल</ref> बारां, और गुल है और चमन है।
आशिक़ के दिल से पूछो क्या ऐश का चलन है।
आ यार! चलके देखें, बरसात का तमाशा॥17॥

शहरों के बीच हर जा, उम्दों के जो मकां हैं।
बारां<ref>बरसात</ref> के देखने की बामो अटारियां<ref>छत, अटारी</ref> हैं।
बैठे हुए बग़ल में, माशूक दिल सतां हैं।
हर रंग हर तरह की मै की गुलाबियां हैं।
आ यार! चलके देखें, बरसात का तमाशा॥18॥

बंगले सभों ने हरजा, ऊंचे छवाए ज़र्दे<ref>हरे</ref>।
मेवे, मिठाई, अम्बा, अंगूर और सर्दे।
पकवान ताजे ताजे, ख़ासे पुलाव ज़र्दे।
बरसे है अब्र बारां<ref>बरसात का बादल</ref>, खुलवा दिये हैं पर्दे।
आ यार! चलके देखें, बरसात का तमाशा॥19॥

अब शहर में जहां तक ओबाश<ref>बदमाश</ref> पेशावर हैं।
बैठे दुकान ऊपर, बे खौफ़ो बे खतर हैं।
माशूक हैं बग़ल में, महबूब सीम<ref>चांदी जैसी गोरी और सख्त वक्षस्थल वाली नायिका</ref> बर है।
और सब ग़रीबो-गुरबा, दिलशाद अपने घर हैं।
आ यार! चलके देखें, बरसात का तमाशा॥20॥

आगे दुकां के नाला है मौज मार चलता।
आलम तरह तरह का आगे से है निकलता।
कोई छपकता पानी और कोई है फिसलता।
ठट्ठा है और मज़ा है आबे अनब<ref>अंगूरी शराब</ref> है ढलता।
आ यार! चलके देखें, बरसात का तमाशा॥21॥

मामूर<ref>भरी हुई</ref> हैं जहां की सब ताल और तलैयां।
सब भर रहा है पानी हो नहर या नहरियां।
और डालियां चमन की बूंदों से झुक हैं रहियां।
बादल भरे हैं जैसे माशूक हैं दो गनियां।
आ यार! चलके देखें, बरसात का तमाशा॥22॥

है जो ”नज़ीर“ जिसकी धूमें उकस्तियां हैं।
सबसे ज़्यादा उसको, अब ऐश मस्तियां हैं।
माशूक़ है बग़ल में, और मैं परस्तियां हैं।
शेरों से मोतियों की बूंदें बरस्तियां हैं।
आ यार! चलके देखें बरसात का तमाशा॥23॥

शब्दार्थ
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