भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बरसात प्यार की हो सारा जहाँ सजल हो / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
Kavita Kosh से
बरसात प्यार की हो सारा जहाँ सजल हो।
नफ़रत की रेत भीगे दहशत न अब सफल हो।
नाले की गंदगी है समुदाय की ज़रूरत,
बहती हुई नदी में पर साफ शुद्ध जल हो।
देवों के शीश पर चढ़ ये हो गया है पागल,
ऐसा करो प्रभो कुछ फिर कीच का कमल हो।
राजा बसे हैं जिनमें ऐसे किले बहुत हैं,
रहते हों जिसमें मुफ़्लिस ऐसा भी एक महल हो।
गर्मी की दोपहर को पूनम की रात लिखना,
गर है यही ग़ज़ल तो मुझसे न अब ग़ज़ल हो।