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बरसात मे अख़बार बेचते बच्चे / भूपिन्दर बराड़
Kavita Kosh से
बरसात घेर लेती है
अख़बार बेचते बच्चों को
गिरती है
उनके दिनों से कहीं तेज़
उनके कन्धों पर
बच्चे कुछ नहीं कह पाते
बस भीगते हैं अन्दर तक
जहाँ वे खाली थे
जहाँ वे बहुत खाली थे
अखबार बेचते हुए
भीगते हुए वे लपकते है
बग़ल में दबाए
पीछे छूटे स्कूल
कारों के शीशों में झांकते
वे फलांगते हैं
अच्छे बुरे दिन