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बरसाया कभी नहीं / एक बूँद हम / मनोज जैन 'मधुर'
Kavita Kosh से
गीतों का मौसम
अपने घर
आया कभी नहीं
चातक सा संकल्प लिए हम
रहे प्यास को साधे
जीवन भर हम हर सावन से
रहे आस को बांधे
बादल आया
किन्तु नेह
बरसाया कभी नहीं
कभी भूख ने पकड़ा दामन
कभी वेदना दौड़ी
पीड़ाओं की डगर मिली है
पग-पग, लम्बी-चौड़ी
दुख से दो दो हाथ किये
घबराया कभी नहीं
निष्ठाओं को डिगा न पाई
कुण्ठाओं की आँधी
जो भी मिली जमीन, भूमिका
हमने अपनी बाँधी
कहर सहे हैं
लाखों लेकिन
ढाया कभी नहीं
पतझड़ का हम थामे दामन
मंद-मंद मुस्काए
सावन और बसंत हमारे
मीत नहीं बन पाए
बस खोना ही
नियति हमारी
पाया कभी नहीं