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बरसा के दुपहरिया रात / रूप रूप प्रतिरूप / सुमन सूरो

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बरसा के दुपहरिया रात!
पानी सें टलमल छै मेघ
भितरोॅ सें झलकै छै चान
अँरा के औढ़ोॅ में बरलोॅ छै दीप
खाढ़ो छै आशा में छौंड़ौ जुआन
रही-रही मारै छै पुरबैयाँ घात!

भरमी केॅ चुप-चुप छै जंगल-पहाड़,
मुस्कै छै धरती के हिरदय में कोढ़,
सुतलोॅ छै छाती में छाती सटाय,
अन्हारोॅ इंजोरिया मंे लागलोॅ छै जोड़,
फुसकै छै की-की अनर्गल सब बात!