भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बरसा / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
बरसा झमझम-झमझम झम
ठनका ठनकै छै की कम
बेंगो नै मारै छै दम
बरसा झमझम-झमझम झम ।
झिंगुर झनझन-झनझन झन
पानी घुसलै सब्भे कन
नानी के नाको छै दम
बरसा झमझम-झमझम झम ।
जे भींजतै ई बरसा में
गर्दन देतै फरसा में
रोग सतैतै फुलतै दम
बरसा झमझम-झमझम झम ।