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बरसों से / संगीता गुप्ता
Kavita Kosh से
बरसो से
जो नहीं लिखि गयी
उस कविता की
पहली पंक्ति हो तुम
तुम से मिलना, तुम्हें जानना
और तुम से सीखना कम्प्यूटर
बहुत अच्छा लग रहा
बरसों बाद
फिर क़लम हाथ में है
और लिखि जा रही कविता
या कविता जैसा कुछ
नहीं जानती
यह बनते - बनते रह गयी
या बनने की प्रक्रिया में है
पर लगातार
यह एहसास साथ है कि
यह जो चेहरा बार - बार
कौंधता है मेरे सामने
वह तुम्हारा है
अपने काम में संलग्न,
तल्लीन
उस समर्थ औरत का
जो इस देष की
बची हुई जिजीविषा है