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बरसो, हे करुणा के जलधर ! / गुलाब खंडेलवाल

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बरसो, हे करुणा के जलधर !
मुझे बहा ले चलो, नाथ ! आनंद-सिन्धु के तट पर !

मेरे मन-प्राणों पर प्रतिक्षण
बरसो सावन की फुहार बन
धन्य बने, प्रभु ! मानव-जीवन
कृपा तुम्हारी पाकर

देखूँ झाँकी वृन्दावन की
राधा-माधव-प्रीति मिलन की
मैंने जो छवि युगल वरण की
गीतों में हो भास्वर

बरसो यों ! मेरे अंतर से
फूट चले स्वर के निर्झर-से
अक्षर-अक्षर से रस बरसे
रुके न धारा पल भर

बरसो, हे करुणा के जलधर !
मुझे बहा ले चलो, नाथ ! आनंद-सिन्धु के तट पर !