भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बरसो रे / गुरु (2007)

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रचनाकार:                  

बरसो रे मेघा मेघा
बरसो रे मेघा मेघा
बरसो रे मेघा बरसो
मीठा है कोसा है, बारिश का बोसा है
कोसा है, कोसा है, बारिशों का बोसा है
जल जल जल जल जल जल जल थल जल थल
चल चल चल चल चल चल चल चल
चल चल बहता चल
नन्ना रे नन्ना रे नन्ना रे नाना रे

बरसो रे मेघा मेघा
बरसो रे मेघा बरसो

गीली गीली गीली हाँ,
गीली गीली माटी, गीली माटी के
चल घरोंदे बनायेंगे रे
हरी भरी अम्बी, अम्बी की डाली
मिल के झूले झुलाएंगे हो
धन बैजू गजनी, हल जोते सबने
बैलों की घंटी बजी, और ताल लगे भरने
रे तैर की चली मैं तो पार चली
पार वाले पर लेके नार चली रे मेघा
नन्ना रे नन्ना रे नन्ना रे नाना रे

काली काली रातें, काली रातों में
यह बदरवा बरस जायेगा
गली गली मुझ को, मेघा ढूँढेगा
और गरज के पलट जायेगा
घर आँगन अंगना, और पानी का झरना
भूल न जाना मुझे, सब पूछेंगे वरना
रे बह के चली, मैं तो बह के चली
रे कहती चली, मैं तो कह के चली
रे मेघा
नन्ना रे नन्ना रे नन्ना रे नाना रे