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बरसौं जामैं बृज बै जाबै / ईसुरी

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बरसौं जामैं बृज बै जाबै।
मेघन इन्द्र सुनावैं।
सात दिन औ सात रात लौं,
बूँदा गम ना खावै।
ब्रज वासिन के घर आँगन में,
जल जमना को धावैं।
लऔ उठा गोबरधन नख पैं,
छैल छत्र सौ छावैं।
कैसे मारे मरत ईसुरी,
जिन खां राम बचावैं।