बरस के बाद बरसने यहाँ आयी है घटा।
वहाँ गगन ही नहीं मन में भी छायी है घटा॥
वो जिनके मीत हैं परदेस निगाहों से परे
जो उनकी याद में फूटी वह रुलाई है घटा॥
गलीचा सब्ज़ धरा का है निखारा धोकर
फूलों कलियों में नये रंगो बू लायी है घटा॥
आँख भीगी है गगन की हैं बिखरते नग़मे
लुभा रही जो दिलों को वह रुबाई है घटा॥
अपने दुख की न कोई बात हमें याद रहे
खुशी का गीत है दुनियाँ की भलाई है घटा॥