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बरस बरस सरके / शिवबहादुर सिंह भदौरिया
Kavita Kosh से
छप्पर हुआ-
पुराना,
घुने बाँस करके।
नन्हें सिर
पहाड़ रख रख कर
बरस-
बरस सरके।
काटी गयीं
बहुत बरसातें,
रिसती और टपकती-
छत के तले
हटाते खाट
रात भर-
इधर-उधर
करके।